कितना कुछ हम कहना चाहते हैं और कह भी लेते हैं
कभी इस से उस से और न जाने किस किस से
फिर भी अनकहा रह ही जाता है
अनकही की गठरी बड़ी बोझिल होती है
तो कभी कह डालो तुकांत और कभी अतुकांत, कभी गेय या अगेय।
किस्सों का सिलसिला बस चलते रहना चाहिए और ज़िंदगी में अनकहा कुछ भी नहीं रहना चाहिए।