Wednesday, June 24, 2020

चार जमा और चौदह बाकी 


चार जमा और चौदह बाकी
Buy Truth Of Life Painting at Lowest Price by Rayana Sahaयही है ज़िन्दगी के हिसाब की कॉपी                           
क्या दिया और क्या लिया?
किसे दिया और किस से लिया?
किसे हंसाया और किसे रुलाया
कब किसी का दर्द सहलाया
जाने-अनजाने  किसे बसाया
तिनका-तिनका नीड़  बनाया
जीवन की भीड़ में किसे भुलाया
किसने कब और कितना लुभाया
जब साँसों का ताना टूटा
ये सब कुछ भी काम न आया
अब बस है अंतिम बार
कांधा देंगे बस चार यार
चार जमा और चौदह बाकी
बस यही है ज़िन्दगी के हिसाब की कॉपी।।

shiva abstract art - Google Search | Lord shiva painting, Shiva ...हे शिव क्या तुम आओगे 


हे शिव !
क्या तुम आओगे
इस कलयुग में जीने को
बोलो, क्या फिर आ पाओगे
एक बार और हलाहल पीने को?

इस बार विष नहीं है साधारण
आना लेकर हरएक निवारण
मथना नहीं है किसी सागर को
पाना नहीं है अमृत की गागर को
इस बार मोहिनी का साथ न होगा
स्वरभानु का गात न होगा 
Mahashivaratri and how to celebrate it – ॐ श्री ...

पग पग पर परीक्षा होगी
हर पथ पर तुम्हारी ही प्रतीक्षा होगी                       
मानव-दानव में भेद नहीं है
साथ तुम्हारे कोई देव नहीं है
कुरुक्षेत्र सा रणक्षेत्र नहीं है
और तुम्हारे पास तीसरा कोई नेत्र भी नहीं है
कर पाओगे?
बोलो क्या तुम आओगे?

मत आना बनकर  अवतारी
व्यापार बना देगी दुनिया सारी
shiva | HappyShappy - India's Best Ideas, Products & Horoscopesकर लेना तुम पूरी तैयारी
मानव को मानव कर देना
हो सके तो दानव में भी मानव सा हृदय रख देना
कर देना तनिक अँधेरा दूर
और लालसा को भेज देना बहुत दूर
छल-प्रपंच और ईर्ष्या भी भगा पाओगे 
बोलो, क्या तुम ये कर पाओगे?
क्या फिर से नीलकंठ बन पाओगे?

तुम तो देवों के भी देव हो
तुम ही तो महादेव हो
एक बार आ जाओ
हमको भी विषपान सिखा जाओ
शायद हम मानव भी जी जाएं
अपने अंदर के विष को पी पाएं
बोलो क्या ऐसा कर पाओगे?
हे शिव क्या तुम आओगे?
















Tuesday, June 23, 2020



तुम इतना क्यों याद आती हो 




माँ! तुम कितना याद आती हो?
या फिर शायद भूली ही नहीं जाती हो। 

दर्पण देखूं तो तुम झलक जाती हो,
पलकें बंद करूँ, तो तुम छलक जाती हो। 

हर बीते दिन के साथ और ज़्यादा याद आती हो,
मेरी बढ़ती उम्र के साथ, मुझमें  समाती जाती हो;
फिर क्यूँ इतना याद आती हो??

हर वो बात, जो तुमको भाती थी -
अब मुझको भी भाती है,
लगती है जैसे तुम्हारी ही थाती है;
और तुम्हारी याद -
वो तो रोज़ चली आती है।। 
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तुम्हे देखने को आँखें तरस जाती हैं,
और तुम्हारी सब बातें बहुत याद आती हैं,
हर रात सपनो की बरात सी आती है ;
फिर भी-
तुम्हारी शकल नहीं दिख पाती है।।

तुमसे हुआ हर झगड़ा अब बहुत हंसाता है,
पर, तुम्हारा प्यार हमेशा रुला जाता है;
मेरा मन मसोस कर रह जाता है,
क्यों की, बस तुम्हारा सपना कभी नहीं आता है।।

अब तो मैं समय से पहले उठ जाती हूँ,
हर चीज़ करीने से सजाती हूँ;
खुद में तुम्हारी छवि ढूँढा करती हूँ,
पता है-
शायद, तुम जैसा बनने की कोशिश करती हूँ।।

दिन पर दिन तुम मुझ में समाती जाती हो;
फिर भी क्यों इतना याद आती  हो??




चाँद की  किरणें  


मधुर सुवासित पवन मंद,
छिड़ गया प्रकृति का वाद्यवृन्द;
लो आ गई सांझ की बेला,
फिर लगा अम्बर पर रंगों का मेला।।

अब आया किरणों के रथ पर बैठ चाँद अकेला,
लग गया रौशनी का रेला,
असंख्य रश्मियाँ जो खींचती उसके रथ को,
अनजाने ही छू-छू जातीं मन और जीवन को,
नित नए भाव होते झंकृत,
जिनसे हो जाता है जीवन अलंकृत।

बीत रही है रात-
छूट रहा है साथ,
दे रही हूँ विदा
अश्रु हैं नयन में,
किरणों, कल फिर आना मेरे आँगन में।।



नदी की जीवनगाथा 



चली थी उद्गम से मैं बनकर सरिता,
पूर्ण प्रवाह में थी मधुर गेयता;
हो जैसे कोई कविता;
पहाड़ियों पर कूदती-फाँदती
नए बंधन जोड़ती-गाँठती 
बलखाती-इठलाती, मैं संकुलों में 
कभी मैदानों में और कभी वनकुलों में।।
वेग कुछ थमा, जब आई परिपक़्वता,
थम गया जीवन, आ गई जड़ता;
ज़रा सी ढाल मिली-
मैं फिर बह चली,
वो चट्टानें जो मार्ग में में गले आ लगीं थीं 
मेरे प्रवाह, वेग और स्पंदन को ग्रस रहीं थीं-

   हो विमुख मैं उनसे चली।।

अब मैं अपने लक्ष्य को चली,
सब कुछ सहेजती और समेटती चली;
कभी मंद मस्ती में-
और कभी वेगवान हो उफनती चली मैं;
जा रही हूँ वहाँ-
बाँहें पसारे खड़ा है सागर जहाँ।।