चार जमा और चौदह बाकी
चार जमा और चौदह बाकी
यही है ज़िन्दगी के हिसाब की कॉपी
क्या दिया और क्या लिया?
किसे दिया और किस से लिया?
किसे हंसाया और किसे रुलाया
कब किसी का दर्द सहलाया
जाने-अनजाने किसे बसाया
तिनका-तिनका नीड़ बनाया
जीवन की भीड़ में किसे भुलाया
किसने कब और कितना लुभाया
जब साँसों का ताना टूटा
ये सब कुछ भी काम न आया
अब बस है अंतिम बार
कांधा देंगे बस चार यार
चार जमा और चौदह बाकी
बस यही है ज़िन्दगी के हिसाब की कॉपी।।
So beautifully worded reality of life.
ReplyDeleteHeart touching poem
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