चाँद की किरणें
मधुर सुवासित पवन मंद,
छिड़ गया प्रकृति का वाद्यवृन्द;
लो आ गई सांझ की बेला,
फिर लगा अम्बर पर रंगों का मेला।।
अब आया किरणों के रथ पर बैठ चाँद अकेला,
लग गया रौशनी का रेला,
असंख्य रश्मियाँ जो खींचती उसके रथ को,
अनजाने ही छू-छू जातीं मन और जीवन को,
नित नए भाव होते झंकृत,
जिनसे हो जाता है जीवन अलंकृत।
बीत रही है रात-
छूट रहा है साथ,
दे रही हूँ विदा
अश्रु हैं नयन में,
किरणों, कल फिर आना मेरे आँगन में।।
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